কথা -
मन करे न बिचार
बृत्तियों के काबु ये संसार।
खाली तेरे जीवन के अब
दिन बचे है चार।।
चोट सत्ता पर जो पड़े
अहं में ही डूबे मरे,
हमबड़ाई अन्धकूप ही
बन गया आधार।।
चक्र कुटिल हीन दुर्बल
स्वार्थ में ही होता पागल,
मरण का ही विष फैलाकर
करता हाहाकार।।
काम जहाँ कामिनी चाहे
लान्छना ही उसको आये,
उसको ही तो कहते लम्पट
घृण्य पुरुष धार।।
नीति पथ तो खूब लिया पर
नष्ट जनम जीवन किया,
इष्ट को जो अपना बनाते
होता रे उद्धार।।
मन करो रे बिचार,
मिल जायेगा जीवन को आधार,
तब होगा बेडा पार।।
১লা সেপ্টেম্বর সৎসঙ্গ ২০০৯
मन करे न बिचार
बृत्तियों के काबु ये संसार।
खाली तेरे जीवन के अब
दिन बचे है चार।।
चोट सत्ता पर जो पड़े
अहं में ही डूबे मरे,
हमबड़ाई अन्धकूप ही
बन गया आधार।।
चक्र कुटिल हीन दुर्बल
स्वार्थ में ही होता पागल,
मरण का ही विष फैलाकर
करता हाहाकार।।
काम जहाँ कामिनी चाहे
लान्छना ही उसको आये,
उसको ही तो कहते लम्पट
घृण्य पुरुष धार।।
नीति पथ तो खूब लिया पर
नष्ट जनम जीवन किया,
इष्ट को जो अपना बनाते
होता रे उद्धार।।
मन करो रे बिचार,
मिल जायेगा जीवन को आधार,
तब होगा बेडा पार।।
১লা সেপ্টেম্বর সৎসঙ্গ ২০০৯