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प्रेम की ऐसी है पहचान

কথা -ধৃতিমান সিং
সুর - পূজনীয় বাবাইদা

प्रेम की ऐसी है पहचान
काल कर सके न जिसको म्लान
प्रिय-चाह में सबकुछ अपना
देने को आप्राण।।

चले जहाँ भी फिरे जहाँ भी
रहता मुख में प्रिय-कथन
सजग प्राण में एकतान में
चलता है बस प्रिय-मनन
प्रेष्ठ-स्वार्थ से पूरण-प्रवण
नहीं और कोई ध्यान।।

रहे जो सुख में पढ़े जो दुःख में
काम नहीं होती अनुरति
कष्ट अकाल भी महाकाल भी
अबाध करती जीवन गति
द्वन्द्व विघ्न और बाधा का भी
नहीं जहाँ कोई स्थान।।

भाव-भक्ति का कर्मशक्ति का
मूल सभी का प्रिय-उपभोग
(जो) मंगलमय परमप्रेममय
प्रेम उनसे ही मंगल-योग
प्रियपरम से ही अनुराग
जीवन में उत्थान।।




১লা সেপ্টেম্বর ২০১২